लेखक की कलम से
हे मानव …
आज नही तो कल , यह तेरा मद टूटेगा
हे मानव ! जोड़ रहा जो धन तू ,
तोड़ रहा है तन तू
छोड़ इसे जाएगा, निश्चय यह छूटेगा ,
कोई आ टपकेगा
देख इसे लपकेगा
चाह या न चाह , इसे निर्दय हो लूटेगा
विद्या भी , यह बल भी
यह विवेक कौशल भी
कुछ न रहेगा , शरीर का यह घट फूटेगा
आज नही तो कल , यह तेरा मद टूटेगा।
©आशा जोशी, लातूर, महाराष्ट्र