लेखक की कलम से

राधा कोस रही …

निशा अभी अभी बीती है, सूरज ने ली अंगड़ाई ।

पथ अभी धुंधले, धुंधले से, राधा चली है धाई ।

 

जमुना किनारे खड़ी राधिका, रस्ता देख रही है ।

आ जाओ सब तोड़ बाधाएं, प्रियतम से कह रही है ।

 

वृंदावन के गोप, ग्वालीन, गउएं, पूछ रही है ।

केहि अपराध यूं छोड़ चले, नित अंसुवन झर रही है।

 

तव दरस बिनु इन नयनों को, तव ध्वनि बिना इन कर्णों को ।

निज दास जान अब कृपा करो, दर्शन दो निज भक्तों को ।

 

इन नयनों को, इन कर्णों को, नित राधा कोस रही ।

क्यों जीवित हूं, इस भूमण्डल पर, राधा सोच रही।

©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)

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