लेखक की कलम से

महिला सशक्तिकरण/सक्षमीकरण …

 

वैसे भी महिला सशक्तिकरण पर लिखना ही अपने आप को “अबला” साबित करना है, हमें अपने आप पर लिखना ही एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है.. क्यों??

लिखने पर पाबन्दी नहीं है, खुब लिखे पर,खुद के लिए दया, विफल नारी, आश्रित, कहकर मत लिखिए,

“नारी” ईश्वर की अनुपम और सर्वश्रेष्ठ कृति,सृजन करने वाली, और जब वह सृजन करता है तो अबला क्यों??ममत्व और भरपूर सहनशक्ति चारिणी, फिर कमजोर क्यों, आदिकाल से स्त्री का वर्चस्व रहा है। इतिहास गवाह है कई उदाहरण मिलेंगे आपको माना यह सच है की पुरुष पूरक है उसके लिए पर इसके लिए अपना अस्तित्व खत्म करना सही नहीं है, वह गरिमा में रहकर बहुत कुछ करती है समाहित होकर भी वह पूर्ण रहती है हाँ आजादी और उन्मुक्त भी होना चाहती है वह अपनी बंदिशे जानती है और रुख मोड़ना भी, अहिल्या, सीता,  द्रौपदी,लक्ष्मी बाई, सावित्री नूरजहाँ या हो इंदिरा गांधी, सरोजनी, मदर टेरेसा वर्चस्व कायम रखा, हर युग में, पर आज की नारी क्यों नहीं सामंजस्य स्थापित कर पाती,,क्यों वह अपने हक्क के लिए ताकत ले लिए मोर्चे निकालती है । क्यों नहीं वह खुद के लिए खुद ताकत वर नहीं बनती?

 

अंत में सिर्फ इतना ही मोर्चे ना निकाले,खुद के लिए लड़े और गरिमा स्थापित करे।

 

वह खुद कमज़ोर बनी है खुद के लिये जब तक वह खुद ताकतवर नहीं बनेगी वह “#मै”के लिए तड़पती रहेगी, जागरूक हो हम और खुद अपने अंदर एक सशक्त महिला बनकर खुद के लिए खड़े होना सीखे एक से दो, दो से तीन और फिर कई,

सीखे बने और खुद के लिए सशक्त बने,तब हम राष्ट्र निर्माण और बेहतर तरीके से कर पाएंगे,है ना….???

 

एक आह्वान…

 

प्रश्न जब स्त्री होने का और उसके अस्तित्व का होता है, तब इतिहास के पन्ने खोल कर पढ़ने चाहिए, #सवित्री_फुले, देश की पहली सुशिक्षित महिला थी, वही #लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली पहली महिला, हर क्षेत्र में आज महिलाओं का दबदबा है, फिर वह multinational company हो या धुप में तपकर खेती या मजदूरी, समय बदला है अपनी मनस्थिति को बदलने का वक्त भी मैं स्त्री हूँ और मुझे स्त्री होने पर गर्व है मैं भारत जैसे देश की सुपुत्री हूँ और इसका मुझे अभिमान है, क्या आपको अपने “स्त्री”होने पर गर्व है?? तो बढ़े मेरे साथ और आवाज दे की हम सशक्त है …

 

©सुरेखा अग्रवाल, लखनऊ

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