लेखक की कलम से

छोड़ दिया मैंने …

 

छोड़ दिया मैंने

दूसरों की कसौटी पर

खरे उतरना

छोड़ दिया मैंने

गहराई में

गहरे उतरना

मैं अब मन की करने लगी हूँ

अपनी कठपुतली का धागा

मैंने तोड़ लिया

अपने रास्तों को

मैंने मोड़ लिया

मैं अब मन की करने लगी हूँ

विश्वास किसी पर

अब नहीं करती

किसी की बातों

मैं नहीं चलती

मैं अब मन की करने लगी हूँ

कच्चे थे जो धागे

उनको तोड़ लिया

नाता मैंने खुद का

खुद से जोड़ लिया

मैं अब मन की करने लगी हूँ

मरने के लिए

ज़रूरी था जीना

मर -मर कर जीना

मैंने छोड़ दिया

मैं अब  मन की करने लगी हूँ

 

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़                                                             

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