लेखक की कलम से

चल ले चल मुझे आज तू मधुशाला…

झूम कर गाए जहां मन मतवाला

दर्द को पी ले मिला के हाला

व्यर्थ की बातों को भुला दे मधुशाला

ना तन्हाइयां ना रुसवाईयां

ना दर्द हो ना खुशी ना बेताबिया

बस मैं और रहे मेरी मधुशाला

पी कर दो घूट मन मयूर नाच उठे

ना दिल में कोई आज शूल चुभे

ना तेरा ना मेरा सबकी है ये मधुशाला

चल ले चल मीत मुझे आज तू मधुशाला

जीवन पथ है काटों से भरा

है हृदय में बड़ा विषाद भरा

कुछ पल लू दे आज मुझे तू प्याला

चल ले चल मीत मुझे आज तू मधुशाला

नहीं यहां कोई अपना और पराया

अमीर ना गरीब सबका एक मोल यहां है पाया

दिन शाम लगे शाम लगे सिंदूरी

खुशी दर्द की ना चाह ना हो कोई मजबूरी

जग को बिसराऊ आज मैं हो बस मेरी मधुशाला

चल ले चल मीत मुझे आज तू मधुशाला

©दीपिका अवस्थी, बांदा, उत्तरप्रदेश

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