लेखक की कलम से

धोखा …

 

सब नजरों का धोखा है

मुस्काते हुए सबसे मिलना है

कब पैर के नीचे से जमीन चली जाए

हमें कभी यह समझ में ही न आए

न रातों में नींद

न दिन का चैन

आंखों के आंसू

दिल को न पिघलाने पाए

जख्म नासूर न बन जाए

खुद सहनशीलता का मरहम चलो लगाएं

नज़रों से हम किसी के गिर न जाए

आओ प्यार को बांटते जाएं

ग़म के गलियारे से

फूलों की खुशबू चुन लाएं

चलो धूप से भी थोड़ी छांव खरीद लाएं

अक्सर मयखानों में नशा होता है

आज वादियों से हम नशा चुरा लाएं

मुस्कुराते चेहरे के पीछे छिपे

अनकहे प्रश्नों को पढ़ जाएं

आओ , नज़रों के धोखे से बच जाएं।।

 

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा

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