लेखक की कलम से

मन को समझो तो जाने …

 

आखिर हमारा मन भीतर ही भीतर क्या क्या समेटे रहता है.. दो अक्षर के इस मन में दुनिया जहान की सारी बातें होती हैं। गागर में सागर समाने की बात मन के मामले में सौ प्रतिशत सच साबित होती है। मोर जब खुश होता है, तो पंख फैलाकर अपनी खुशी जाहिर करता है और दूसरे ही क्षण स्वयं के पैर देखकर दुखी हो जाता है। मानव मन भी एक पल में खुश हो नाचना चाहता है और दूसरे ही पल दुखी हो उठता है।

विचारों के समंदर में डुबकी लगाता है। प्रत्येक लहर के साथ जीवन के अनुभव लेने को तैयार हो जाता है। ले‍किन कुछ मामलों में बड़े नखरे करता है। उसे मनाना हमारा काम है और वह मान भी जाता है, बिल्कुल उस कोमल पंखुड़ी की भांति, जिसने अभी-अभी बारिश की बूंदों का स्पर्श किया हो। प्रत्येक व्यक्ति की सोच का अपना दायरा होता है। मन, नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों ही तरह से विचार करता है। इसको समझ पाना बड़ा ही कठिन है।

हम जिंदगी भर इसके ताने-बाने में उलझे ही रहते है। ऋषि-महर्षि से लेकर वैज्ञानिक और दर्शनशास्त्रियों तक ने इस पर टीका-टिप्पणी की, फिर भी मन को समझ नहीं पाए हैं। रेत के ढेर की भांति मन काम करता है…. कभी तो रुकना चाहता है, कभी नदी के जल की भांति बहना चाहता है। रुकना मन की नियति नहीं है, वह तो हर क्षण चलना चाहता है, उथल-पुथल करता है। ठीक उस जिद्दी बच्चे की तरह, जिसे जोर से डांट लगाने पर वह थोड़ी देर तो चुप हो जाता है, लेकिन फिर अपनी बात मनवाने के लिए जिद करने लगता है।

हां, मन भी तो यही करता है। हम लाख समझाएं, फिर भी नहीं मानता…। आखि‍र हारकर हम वही करते हैं, जो हमारा मन चाहता है। कर्म करते हैं, क्योंकि हम मन से असीम प्रेम करते है। मन प्रेम के मामले में बड़े असमंजस में डालता है। कभी तो इसे एक पल में कोई अच्छा लगने लगता है….प्यारा लगने लगता है, लेकिन यह क्या उस प्रिय व्यक्ति ने समय पर फोन नहीं किया तो मन बड़े -बड़े प्रश्न कई संदेह पैदा कर देता है। प्रेम के रास्ते में ब्रेक लगाता है, फिर बात की गहराई को खत्म होते देर नहीं लगती। मन बीते लम्हों को यादगार बनाना चाहता है,  इसीलिए तो कल्पना से खुश हो हम दिन, महीने, और साल गुजार देते है।

इसी ऊहापोह में मन फिर चंचल हो जाता है..। वह अपना काम करने लगता है। मन यथार्थ को पहचानता है। इस कड़वे सच के साथ वह स्वप्नलोक की सैर करना नहीं भूलता। शायद यही मन की खुराक है, जिससे वह खुद तंदुरस्त रखता है। बुरे समय में मन ही तो आशा के बीज बोता है…। कहता है, हिम्मत न हार, अच्छा समय अभी आने वाला है। दिमाग कह उठता है – मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

 

©प्रफुल्ल सिंह, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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