लेखक की कलम से
ऋतुराज ….
सिमटी सिमटी वसुधा व्याकुल ,
पीत वसन लहराने को ।
समझो ऋतुराज है व्याकुल
इस वसुधा पर आने को ।।
बिखर गए हैं रंग सुनहरे ,
बाग बगीचे चौबारे ।
भांति भांति के सुमन बिखेरे,
सौरभ मन आंगन द्वारे ।
फूल कली सज धजकर बैठी ,जीवन राग सुनाने को ।
समझो ऋतुराज है व्याकुल , इस वसुधा पर आने को ।१
ओढ़ ओढ़नी मचला मौसम ,
लहर लहर लहराये रे ।
मदमाता मधुमास झरे है ,
पात पात बलखाये रे ।
ऋतुराज दलबल संग आए ,अपनी धाक जमाने को ।
सिमटी सिमटी वसुधा व्याकुल , पीत वसन लहराने को ।२
हर्षित मन मोहित जग सारा ,
बासंती परिवेश सुहाना ।
अद्भुत है सौंदर्य धरा का ,
गाए मनवा नवल तराना ।
नेह प्रेम उद्गाता बनकर,आया जगत जगाने को ।
समझो ऋतुराज है व्याकुल , इस वसुधा पर छाने को ।।३
©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़