तुम्हारे इंतजार में ….
तुम्हारे इंतजार में
क्षण-क्षण काटना दूभर हो गया ,
मन मायूस, तन परेशान
हृदय में छाये ,भावों के तूफान ……
तुम्हारे इंतजार में
हृदय हुआ ,
व्याकुल,अधीर …
मन हुआ ,
हैरान,परेशान …..
ऐसा लगा
जैसे व्यक्तित्व हिला गया
कोई विचार महान …..
तुम्हारे इंतजार में
खोई ऐसे ,जैसे खोये कोई
उपन्यास में ……
तुम्हारे इंतजार में
साधनारत हुई जैसे,
कोई ऋषि परम लक्ष्य हेतु हो ध्यानस्थ,
तुम्हारे इंतजार में
ऐसा लगा जैसे सुदूर यात्रा पर
निकल पड़ी हूँ ,
साइकिल पर सवार
अनवरत खोजती-निहारती
रास्तों पर एकाकी चलायमान ….
तुम्हारे इंतजार में
ताकती नजरें अनंत में
जैसे खोज निकालूंगी
दिगंतर असीम
के संधि स्थल को….
तुम्हारे इंतजार में
भटकती मैं
विचारों के गलियारों में ,
कब-कब
कहाँ-कहाँ
तुम से भेंट हुई थी?
पुनः वैचारिक मुलाकात करने हेतु
मैं,
तुम्हारे इंतजार में
खुद को ट्रेन पर सवार
चलती गाड़ी में बैठी पाती हूँ
रेलगाड़ी की छुकछुकाहट
मेरे इंतजार को भग्न करती हैं
एहसासों से भर देती है
एक अंतहीन इंतजार
तुमसे मिलने की प्रबल आस !
तुम्हारे इंतजार में
निष्क्रिय बैठी हूँ युगों से,
जन्म जन्मांतर से
भटक रही हूँ,
सर्वस्व भुलाकर ,
जैसे हिरण भूले अपनी चपलता को,
दिवाकर भूले अपने आपको ,
शशि बिसारे अपनी शीतलता को ,
वायु विस्मित कर जाये अपनी गतिशीलता को ,
ठीक वैसे ही
मैं बिसरी जीवंतता को ….
तुम्हारे इंतजार में
तुमसे एकांतिक मिलन हेतु,
तुम्हारे इंतजार में,
सिर्फ तुम्हारी !!!
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता