कोरबा

वृन्दा करात ने कहा- अमित शाह होम नहीं हेट मिनिस्टर बनकर रह गए

कोरबा में पत्रकार वार्ता

कोरबा (गेंदलाल शुक्ल)। ‘अमित शाह इजनाट होम मिनिस्टर, ही इज हेट मिनिस्टर’। यह कहना है भारत की कम्युनिष्ट पार्टी मार्क्सवादी (सीपीआईएम) की पोलित ब्यूरो सदस्य वृन्दा करात का। वे आज कोरबा में पत्रकारों से चर्चा कर रहीं थीं।

माकपा नेता वृन्दा करात ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून में पहली बार धर्म की शर्त जोड़ी गई है, जो हमारे देश के संविधान की बुनियादी धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर ही हमला है। इसके खिलाफ पूरा देश आंदोलित और उदवेलित है। एनपीआर और एनआरसी के साथ मिलकर यह कानून देश की एकता-अखंडता को ही नष्ट करने वाला है। इसकी चपेट में गरीब, आदिवासी, दलित, मजदूर सभी आने वाले हैं, जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सरकार द्वारा उनके माता-पिता के जन्म से संबंधित कागजात नहीं है। इस आंदोलन के खिलाफ स्वयं गृहमंत्री जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उससे साफ है कि वे होम मिनिस्टर नहीं, बल्कि हेट मिनिस्टर बनकर रह गए हैं।

उन्होंने एनपीआर और एनआरसी का जिक्र करते हुए कहा कि एनपीआर भारी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला भी साबित होगा, क्योंकि सरकारी अमले को ही संदिग्ध नागरिकों की पहचान का जिम्मा दे दिया गया है और उन्हें जो भी नागरिक किसी भी कारण से पंसद न आये, उसे उसके नाम पर निशान लगाने का अधिकार देता है। ऐसा अधिकार इस देश के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है। निशान न लगाने के लिये यह अमला नागरिकों से घूस मांग सकता है। इस प्रकार एनपीआर एनआरसी की पहली सीढ़ी है। उन्होंने कहा कि केरल की वाम-जानवादी मोर्चे की सरकार ने एनपीआर लागू न करने की घोषणा की है। अब यह आग छत्तीसगढ़ सहित देश के 12 राज्यों में फैल चुकी है।

एनपीआर लागू करने का अधिकार राज्यों का है। देश ही बहुमत जनता और अधिकांश राज्यों का इसके खिलाफ होने के बावजूद मोदी सरकार के इस पर अड़े रहने से स्पष्ट है कि यह सरकार देश के संघीय ढांचे की कोई इज्जत नहीं करती और तानाशाही व्यवस्था लादना चाहती है। संविधान, प्रजातंत्र और धर्म निरपेक्षता पर यकीन करने वाली बहुमत जनता मिलकर इस मुहिम को मात देगी और आरएसएस के भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की परियोजना को धूल चटाएगी।

माकपा पोलिट ब्यूरों सदस्य वृन्दा करात ने देश की अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारा देश गंभीर आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। लोगों की क्रयशक्ति में भारी गिरावट आई है। बेरोजगारी, गरीबी और कुपोषण बढ़ गया है। ऐसे में अपेक्षा थी कि मोदी सरकार एक ऐसा बजट लाएगी, जो देश को इस संकट में निकाल सके लेकिन हमने देखा कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाली योजना मनरेगा के बजट में ही 9500 करोड़ रुपयों की कटौती कर दी गई, जबकि पिछले साल 1000 करोड़ रुपए की कटौती की गई थी। खाद्य सब्सिडी में 75532 करोड़ की कटौती की गई है, जिसका सीधा असर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए देश के गरीबों को मिलने वाले खाद्यान्न पर पड़ेगा। वैसे भी हमारा देश भूख सूचकांक में 117 देशों में 102 वें स्थान पर है।

देश की आधी से ज्यादा महिलाएं और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, इसमें और गिरावट आएगी। कृषि, सिंचाई और ग्रामीण विकास के बजट में कोई वृद्धि नहीं गई है और किसानों की आय दुगुनी करने का दावा दूर का सपना है। खाद, बीज, कीटनाशक, डीजल, बिजली आदि सभी चीजों की कीमतों में वृद्धि हुई है, लेकिन स्वामीनाथन आयोग की फसल की सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का वादा तो वह भूल ही चुकी है, जबकि भाजपा राज में ऋणग्रस्तता से तंग किसानों की आत्महत्या की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने कहा कि बजट में कारपोरेट को टैक्स में लाखों रुपए की छूट दी गई है। यह तबका बैंक से लिए गए कर्जों को चुकाने से इनकार कर रहा है और देश छोड़कर भाग रहा है। इनसे वसूली के बजाय पैसे की कमी का रोना रोते हुए एनआईसी, कोयला और इस्पात जैसे सार्वजनिक उद्योगों को बेचा जा रहा है। इस प्रकार यह बजट जनविरोधी है और जनता की किसी बुनियादी समस्या को हल नहीं करता।

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