लेखक की कलम से

मैं मजदूर …

 

हाथों में फौलाद लिए, रगों में साहस भरता हुँ |

अमृत बूँद गिरा धरा में, कर्म किए मैं चलता हूँ ||

 

 

भानु की तपिश किरण, भरी दोपहरी धूप में भी |

श्रम के पुजारी हैं हम, मैं भाग्य बदलने आया हूँ ||

 

 

विपदाओं से घिरे हुए, विपदाओं को तोड़ चले |

भूखे प्यासे कुम्हलाए, नित नए आस जगाता हूँ ||

 

 

पत्थर गारे ईंट चुन, श्रम की बूंद नित गिरता है |

टूटे हुए झोपड़ी मेरा, खुद नए इमारत बनाता हूँ |

 

 

घर आँगन है सुने सुने, खेत खलिहान छोड़ चले |

भूख मिटाने सबका मैं, पथ नित भूखे चलता हूँ ||

 

 

पैरों में भी ये छाले पड़े, जीने की राह आसान नहीं |

मंजिल की तलाश लिए, शहर-शहर मैं भटकता हूँ ||

 

 

कौन सुने और कौन देखे, यह पहाड़ जैसा दर्द मेरा |

मजबूरी में मजदूरी करता, भूखे पेट रहता मैं मजदूर ||

©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़

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