लेखक की कलम से

आफत के पानी …

मुड़ धर के सब, किसान रोवत हे।

जागत हावय अउ नही सोवत हे।।

कहाँ ले आगे ये, आफत के पानी।

खतम करदिस हे, सरी किसानी।।

मुँहू के कौरा छिनागे जंवारा,

करेजा होगे रे चानी-चानी—

 

करजा बोडी करके, करेन किसानी।

तरसे रेहे हन रे, एकक बूंद पानी।।

संझा लागे न, लागे जी बिहनिया।

लाहकत जावन, खेत मंझनिया।।

होये फसल ह,देख चौपट होगे।

फेर फिरगे रे सपना म पानी–

 

किस्मत फुटगे, अउ जांगर ह टुटगे।

हाय विधाता तेहा, काबर रुठगे।।

जावन ते हम, कदे डहर जावन।

अपन पीरा ल कोन ल बतावन।।

का करंव मेंहा, सब बुध हजागे,

अब कइसे करके करंव ग सियानी–

 

टुटहा करम के, फुटहा हे दोना।

पानी गंवागे,देख चारो कोना।।

खातु-कचरा के देख होगे रोना।

घर ले पड़ही रे, सबला पुरोना।।

कइसे करके अब हमन जिबोन-

अउ कइसे चलहि, हमर जिनगानी—

 

एक तो करोना के, डर ह परे हे।

कतको मनखे, झझक म मरे हे।।

खेत के धान ह, खेत म परे हे।

पेड़ सुद्धा देख, दाना ह सरे हे।।

छाती फटगे वाह रे किस्मत,

आँखि ले, बोहावत हे पानी…

 

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)            

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