लेखक की कलम से

क्या है वैराग्य आइए जानते है ….

 

“निर्लिप्त रह कर जीवन को पूर्णता से जीना

हर पल जीवन में आनंद लेंकर जीना

भूतकाल को भूल तुम वर्तमान में ही जीना

जीवन का असली सच यही है यूँ ही जीना

पूर्ण वैराग्य है जीवन को सच्चाई से जीना”।

वैराग्य, हिन्दू, बौद्ध तथा जैन आदि दर्शनों में प्रचलित प्रसिद्ध अवधारणा है जिसका मोटा अर्थ संसार की उन वस्तुओं एवं कर्मों से विरक्त होना है जिसमें सामान्य लोग लगे रहते हैं। ‘वैराग्य’, वि+राग से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ राग से विलग होना है अर्थात मोह को त्यागना भी वैराग्य की श्रेणी में आता हैं।इसको ही बोल भी जाता हैं कि मन को वश में करो तो पूर्णता मिलेगी।

उदाहरण के तौर पर जैसे ही कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि अर्जुन मन को वश में करना कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। मन को अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है। अभ्यास विचारों का देखने का। जब आप विचारों के साथ बहने के बजाय उनको देखना शुरू करते हैं, तब आप उनके मालिक हो जाते हैं। उसके बाद आप जिस चीज का विचार करना चाहे करें। जिसका न करना चाहे न करें, ऐसे कुछ भी मन में नहीं चलता रहता। वैराग्य का यह मतलब नहीं कि संसार छोड़ कर संन्यासी हो जाओ, जैसे कि अर्जुन होना चाहते थे। वैराग्य का मतलब मन की जो बंदर की तरह एक चीज से दूसरी चीज परे कूदते रहने की प्रवृति है उसको देखना। आप ने कभी ध्यान किया कि मन हमेशा उस चीज में उत्सुक रहता है जो आपके पास नहीं है। जो आपके पास है, वह मिलते ही बेकार हो जाती है। मन को इस प्रवृति को पहचानना, उस पर हंसना, उसके प्रभाव में आकर जिस किसी चीज के पीछे भागे मत पड़ना ही वैराग्य है। अभ्यास और वैराग्य से ही मन वश में होता है।

प्राय: वैराग्य का अर्थ लिया जाता है कि घर बार छोड़ कर उदास हो कर गंगा किनारे बैठ जाना।इसीलिए कुछ लोग कहते हैं कि हम तो गृहस्थ वाले हैं अत: हम वैराग्य कैसे करें? कुछ लोगों का कहना है कि घर-बार, समाज, सोसायटी सब कुछ छोड़ कर जंगलों में या शहर  से दूर निकल जाओ। जो घर में रहता है, उसके बारे में कहते हैं कि ‘यह राग वाला है, संसारी है, गृहस्थी है।

वैराग्य का यह अर्थ नहीं है।घर-बार छोड़ कर हरिद्वार जाकर बैठ जाने का नाम वैराग्य नहीं है।तो वैराग्य क्या है? संसार को असार जानना, देह को मिट्टी समझना- वैराग्य हैं।उसके लिए यह ज़रूरी नहीं है कि तुम शहर या गाँव में रहो या हिमालय की किसी गुफा में रहो।अगर आपको यह बात समझ लग गई कि तुम्हारा यह देह मिट्टी है और जिस संसार को तुम देख रहे हो, यह सदा नहीं रहेगा, इस बात का निश्चय हो जाए, यही वैराग्य है।

 

“वैराग्य कोई  सोच-विचार नहीं है

मन की ,भाव की, भावना की बात है

इसलिए वैरागी, सच्चा वैरागी होता हैं

पागल सा ही सबको मालूम होता हैं”।

 

@डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद

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