लेखक की कलम से

रोक न पाओगे …

कब तक मेरे असफल होने का जश्न मनाओगे

मेरे किस्मत को मेहनत से बदलने का जज्बा का

तुम अंदाजा न लगा पाओगे।

ऊंची उड़ान भर कर ही मंजिल मिल सकती है।

दृढ निश्चय की पहचान अब न रोक पाओगे।

कर दिखाने का जुनून नस नस में अब दौड़ता।

मेरी पहचान को अब न रोक पाओगे।

आँधी तूफानों से टकरा कर आगे बढ़ना है।

अब दीये की इस लौ को चमकने से न रोक पाओगे।

आशियां सफलता के सर्वांगीण विकास का वर्णित संसार में

विजय आसमां को छूने से अब न रोक पाओगे।

हमने हौसलों को संजो कर, हार के कहर में डूब कर

सफलता के मोती को निकाला है।

अब प्रगति के छोर को कभी न रोक पाओगे।

मेरी नाकामी की कालिमा को दूर किया।

जोश की सुनहरी धूप से अब सफलता की कड़कती

धूप को छींटा कशी के दौर में भी न रोक पाओगे।

कहते थे जो तुमसे न हो पायेगा।

आज उनका शुक्रिया।

मेरे कामयाबी के ताज तक मुझे पहुँचाने वालों।

आपका शुक्रिया

आपकी कमियाँ खामियां निकालने के अंदाज का शुक्रिया

भूत से वर्तमान तक लाने, मेरा भविष्य उज्जवल बनाने

से, रोक न पाओगे।

कब तक मुझे नाकामी का मुखौटा पहनाओगे।

अब पंखों की फड़फड़ाहट ने मेरी दुविधा के सारे बंधन

तोड़ दिये।

मेरा आज मिला जो मुझे

उसे और भी लाजवाब बनाने से अब न

रोक पाओगे …

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा

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