लेखक की कलम से

करते ही क्यों हो …

कविता

पाँव जलते है जो,

अंगारों पे गर,

तो आग पे,

यूँ चलते ही क़्यों हो।

 

डरते हो भीग जाने से,

तर- बतर,

यूँ बरसात में,

निकलते ही क्यों हो।

 

और खौफ है,

जमाने का इस कदर,

तो मुझसे प्यार,

करते ही क्यों हो।

 

आ जाओ जिंदगी में,

हकीकत बनकर,

यूँ रोज खुआबो मे,

आते ही क्यों हो ….

 

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

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