लेखक की कलम से

रिक्शेवाला…

देख के दर्द रिक्शेवाले का

मेरे रोम सिहर जाते हैं

जाने क्यों रिक्शेवाले से

लोग मोल-भाव बतियाते हैं…

बड़े-बड़े होटल में जाते

दोस्तों में रौब दिखाते हैं

महँगे भोजन आर्डर करके

मूँछों पर ताव फिराते हैं

पर बारी जब रिक्शे की आती

फिर मोल-भाव बतियाते हैं…

हर ट्रैफिक पर पों-पों करते

गुस्से में ही गुर्राते हैं

धूप में जलते रिक्शेवाले पर

एसी में बैठ चिल्लाते हैं

जाने क्यों रिक्शेवाले पर

लोग इतनी अकड़ दिखाते हैं

काश! कोई अधिनियम ये होता

मिलता उनको भी सम्मान

कुछ पल को झुक जाती अमीरी

और अमीरों का अभिमान…।।

@विभा देवी, पटना

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