लेखक की कलम से
लिख देना तुम …
(ग़ज़ल)
मेरे मोहब्बत करने का ये अंजाम लिख देना तुम
अपनी तमाम मुश्किलात मेरे नाम लिख देना तुम
बहुत ज़ुल्म किया है तुम पे समाज और रिवाज़ ने
तुम्हारे अश्कों को पीना मेरा काम लिख देना तुम
तुम्हें नसीब हों नई सुबह की नई – नवेली किरणें
मुझे अपनी बेझिल साँसों की शाम लिख देना तुम
नहीं वश में हो तुम्हारे जब लफ़्ज़ों की ख़ातिरदारी
बहते हवा को चूम कर मुझे पैगाम लिख देना तुम
बिन कुछ कहे भी मैं समझ लूँगा तुम्हारे अलफ़ाज़
मुझे तुम्हारा धर्म , तुम्हारा आवाम लिख देना तुम
इतनी तरकीबों से भी अगर तुम्हें खुश न रख पाऊँ
तो मुझे कोशिशे – इश्क़ में नाकाम लिख देना तुम
©सलिल सरोज, कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, नई दिल्ली