लेखक की कलम से

बस यही अरदास है …

खामोशियों के इस मंज़र में,

जिंदगी सिसकती सी सुनाई देती है।

जीवन नैया भंवर में सब की,

मंझधार में दिखाई देती है।

क्या गुनाह  इन मासूमों का,

जो अपने इनको छोड़ ग‌ए।

मंजर बने खौफ के हर पल,

झंझावतों में छोड़ गये।

हाथ छुड़ा आज अपने देखो यूं  ही बस जा रहे,

जैसै कोई नाता ना हो, बस ये बेगाने हो।

हे ईश्वर बस इतना करना,

किसी का कोई अपना ना रूठे,

ना कोई अपनों से बिछुड़े,

ना ही किसी का घर बिगड़े।

कभी लगता था मानव जन्म ही श्रेष्ठ है,

पर अब लगता पशु पक्षी ही होते,

साथ में रहते परिवार के,

यूं  ही ना  हम बेबस होते।

हे प्रभु तेरी इस दुनिया में,

इंसान कितना बेबस है।

चारों तरफ बस त्राहिमाम है,

मचा हुआ कोहराम है।

जो कुछ गलती हुई प्रभु हमसे,

हाथ जोड़ क्षमा मांग रहे।

आकर  आप इस रक्तबीज रुपी,

कोरोना का बस अब संहार करें।

छोटे बड़े सभी की इस धरती पर

आज बस यही अरदास है….

बस यही अरदास है प्रभु….

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश                               

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