लेखक की कलम से

वृक्ष …

 

ऐ वृक्ष तूने सदा, हमें, क्या- क्या नहीं दिया।

और तुझसे अब तलक, यहां क्या- क्या नहीं लिया ।

लिया तेरा अंग-अंग, पर, क्यों गुण न ले सके ,

वक्त रहते झांकले, मनुज क्या-क्या सही किया ।।

 

न्यारा प्यारा देश जहां, वृक्ष देव कहलाते हैं ।

वट, पीपल व भांति-भांति, के वृक्ष पूजे जाते हैं।

किसका नस्लें है यहां, जो वृक्षों को चोटें दिए,

चिपको आंदोलन चला, जहां प्राण तक गंवाते हैं ।।

©रानी साहूरानी, मड़ई (खम्हरिया)

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