लेखक की कलम से

कौन लौटाए बचपन …

कौन लौटाए बचपन हमें
घर की जिम्मेदारी पढ़ाई का खर्चा
छोटी बहन के आँसू माँ की बीमारी
कहीं बोझ न बन जाए।
कलियाँ खिलने वाली
पिता के जाने के बाद
मेरी जवानी आने से पहले
न जाने आ गई कहाँ से यह जिम्मेदारी।
दो रोटी के लिए फैलाए हाथ
कमाने निकले हम दो वक़्त का अनाज
लायक बनते-बनते
अपने उम्र से अधिक हो बैठे हम,
मालिक दिन-रात है काम कराते
कन्धों पर है बोझ बढ़ते जाते।
‘उफ’ करने की न हमें अब वक़्त मिले
छोटी उम्र में बोझा अब न कम था।
क्या करते कभी किस्मत तो कभी खुद को कोसते,
फिर भी बिना रुके इस कमसीन उम्र में भी हम आगे बढ़ते जाते।।
बालमजदूरी के चक्की में तो पीस रहे
लेकिन लाचारी की चक्की से कौन बचाए हमें हाँ, कौन इस बचपन को लौटाए हमें।।

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा                                  

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