किश्ती फँसी हैं बीच भवर में …
किश्ती फँसी है भवसागर बीच नाविक विचलित मत होना ।
अंधकार की आंधी का निश्चय ही है खत्म होना ll
अविचल और अडिग मन से तुम पतवार संभाले रखना ।
आज नहीं तो कल तक ही तुमको है पार जरूर होना ll
लहर एक छल बना आया तुम्हें केवल पथ भ्रमित करने को ।
इस साजिश को तोड़ निकल तुम सही राह पर चलने को ll
कमजोर पड़े जो तेरे निश्चय तो पथ भ्रमित हो जाओगे ।
लहरों के इस बीच भंवर में फंस कर ही रह जाओगे ll
प्रशस्त किनारा राह में बैठा लहर थपेड़ा खा कर रोज ।
तुम्हारे पास तो पतवार सहारा उसके पास नहीं कुछ और ll
उलझ सुलझ कर पार लगाना अपने सहित नौका को तुम ।
अपने आने वाली पीढ़ी में नया विश्वास जगाना तुम ll
बेशक नौका जीर्ण तुम्हारे पतवार में भी कई छेद ।
सूझबूझ और हिम्मत कर सीना तुमको सभी छेद ll
भवसागर की अथाह गहराई इससे तेरा क्या वास्ता ।
नौका तो सतह तैर रहा तुमको तो मंजिल से वास्ता ll
कष्ट बहुत है इस जीवन में भवसागर की गहराई अनंत ।
नेक और सद्कर्मो का पतवार बना पहुंचना तुम को अनंत ll
लहर हिचकोले खाकर बनते हैं एक कुशल खेवनहार ।
जीवन के हिचकोले से जूझ कर करना है भवसागर पार ll
हम मानव की जीवन नैया फंसी हुई भवसागर बीच ।
लहरों के इस उथल-पुथल में जीवन फंसी भवसागर बीच ll
लहरों का तो एक काम बस जीवन में बाधा लाना ।
हम मानव का धर्म बस लहरों पर ही चलते जाना ll
लहर पार कर हम जाए जाएंगे सागर के उस पार भी ।
अपने आने वाली नस्लों में छोड़ जाएंगे मिसाल भी ll
बेशक कल हम हो ना हो कुशल नाविक में मेरा नाम ।
देश और समाज में छोड़कर जाना अपने केवल सुलझे काम ll
©कमलेश झा, फरीदाबाद