लेखक की कलम से

हम आदिवासी …

 

आधुनिकता के साथ साथ हम,

आज भी अपनी परंपराएं निभाते हैं।

हाँ हम आदिवासी हैं,

हर क्षेत्र में अपना परचम

लहराते हैं।

मंच कोई सा भी हो खुलकर

सामने आते हैं ।

हमें प्यार है अपने गांवों से,

प्रकृति की मनोरम क्रियाओं से

देखके बैलों की जोड़ी मन

मन ही मुस्काते हैं।

हाँ हम आदिवासी हैं,

अपनी परंपराएं निभाते हैं।

 

बारिश में मिट्टी की खुशबू हमें,

अच्छी लगती है गांवों से आई

चिट्ठी हमें अच्छी लगती है

जल, जंगल, जमीन से सदियों

पुराना हमारा नाता है।

तीर कमान आज भी हमें

उतना ही भाता है ।

हाँ हम आदिवासी हैं,

अपनी परंपराएं निभाते हैं।

हमारी संस्कृति, रीति रिवाज पहनावा,

पूरे विश्व में अलग पहचान दिलाता है।

हाँ हम आदिवासी हैं,

अपनी परंपराएं निभाते हैं।

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                 

 

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