लेखक की कलम से
ईमान …
एक तरफ देखा है, जमीं पर चांद देखा है,
इश्क का हाल होते हुए, इश्क ने देखा है।
हर तरफ बेवफाई, हर तरफ बेगैरत लोग,
जमाना ना समझ, खुद को शरीफ देखा है।
इंसाफ खुद करने चला, दलिले खुद की करता,
ईमान सबका झूटा, खुद सच्चा बनते देखा है।
और तेरा गलत हर दफा, मै सही मेरी नजरो मै,
तुझे गिराकर खुद खड़ा, ईमान डगमगाता देखा है।
©विशाल गायकवाड, वर्धा महाराष्ट्र