लेखक की कलम से

कुण्डलिया…..

ज्ञानी अक्सर मौन रह, दर्शाते निज गूढ़ ।
शब्दों की बमबारियां, करते क्यों हैं मूढ़ ।।
करते क्यों हैं मूढ़, मोल समझे नहिं वाणी ।
स्थिर है सागर नीर, देख सीखे नहिं प्राणी।।
मौन साधना जान , साधलो इसको रानी ।
मित भाषण का मर्म, समझते सच्चे ज्ञानी।।

©श्रीमती रानी साहू, मड़ई खम्हारिया

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