लेखक की कलम से

बहुत अच्छा लगता है ….

बहुत अच्छा लगता है तेरा अपनापन दिखाना ,

वो तेरा मुझे ओ मेरी प्यारी कह के बुलाना ।

कभी रूठना मेरा और तेरा प्यार से मनाना ,

ना मानूं तो थपथपा कर मेरे गालों को जानूं कहकर बुलाना ,

फिर चुपके से मेरे लबों से अपने लबों के पैमाने टकराना ।

कोई हो मुश्किल तो ” मैं हूं ना ” तेरा ये कह कर ढांढस बंधाना ।

कभी मेरे दृगजल को अपने रसीले लबों पे लेना ,

कभी रख हथेली पर उन्हें सीने से लगाना ,

कभी उस पर तेरा भी चक्षुजल बरसाना ।

प्यार से भर आगोश में वो मुझे गले लगाना ,

हां अच्छा लगता है , तेरा इस तरह प्यार जताना ।

चांदनी रात में देना बाहों का सिरहाना ,

कभी सीने पे अपने मेरे गेसू रख कर सहलाना ।

कभी बांधना बाहुपाश में ,नशीले नैनों के जाम पिलाते हुए ,

उंगलियों से मेरी कस्तुरी को छुना , और मुझे गुदगुदाना ,

उस पर मेरा शर्माना ।

उफ्फ, बस अब और नहीं सब्र कह कर मेरे शफ्फाक बदन से खेलना ,

हटा कर सब शर्मो – हया के पर्दे एक – दूजे में समा जाना ,

दो जिस्मों का एक हो जाना ,और मेरा चर्म सीमा का आनन्द पाना ।

हां ………….. बहुत अच्छा लगता है तेरा ये प्यार का तराना , तेरा मुझको यूं गुनगुनाना ।

 

©प्रेम बजाज, यमुनानगर

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