लेखक की कलम से
ये पायल के घुँघरू…
ये पायल के घुँघरू
ये कंगन की कड़ियाँ
भाये न मन को
अब लागे हथकड़ियां
पिया जब से हुए हो
तुम बैरन हमारे
बीते न पल
ये जुदाई की घड़ियाँ
देती हैं सखियाँ भी
ताने अब मुझको
खामोशी टपकती
बन आँसू की लड़ियाँ
कैसे खुद को अकेले
मैं ढाँढस बधाऊँ
चाँद तारे भी हुए
अब मेरी बैरनिया
©विभा देवी, पटना