स्वाभिमान पार्टी के अध्यक्ष पूरन छाबरिया ने तेंदूपत्ता तुड़ाई पर रोक लगाने मुख्यमंत्री भूपेश के नाम कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
गौरेला (आशुतोष दुबे)। स्वाभिमान पार्टी के नेता, प्रदेश अध्यक्ष व पर्यावरण प्रेमी पूरन छाबरिया ने तेंदूपत्ता संग्रहण नीति को बंद करने की मांग छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से की है। उन्होंने कहा कि तेंदूपत्ता तुड़ाई से ठेकेदारों को फायदा होता है और आदिवासी मजदूरों का केवल शोषण ही हो रहा है। यही नहीं इससे वन्य सम्पदा सहित अन्य औषधियों का विनाश भी हो रहा है। उन्होंने कलेक्टर शिखा राजपूत को मुख्यमंत्री के नाम पत्र भेजकर तेंदूपत्ता तुड़ाई में रोक लगाने की मांग की है।
उन्होंने पत्र में कहा कि तेंदूपत्ता को षड़यंत्र पूर्वक हरा सोना कहा जाता है। आरोप लगाया कि तेंदूपत्ता तुड़ाई प्रक्रिया में जंगलों में जानबूझकर आग लगाई जाती है ताकि तेंदूपत्ता मुलायम रहे। इस तरह आग लगाने से वनों में उपलब्ध अनेक प्रकार की औषधियां जलकर नष्ट हो जातीं हैं। यही नहीं वनों में तैयार हो रहे अन्य पौधे भी जलकर खाक हो जाते हैं। जिससे वनों का लगातार विनाश हो रहा है।
पूरन छाबरिया ने कहा कि तेंदूपत्ता संग्रहण नीति वास्तव में वनों के साथ-साथ मजदूरों के जीवन में ज़हर घोलने का काम कर रही है। अपने अध्ययन से तर्क देते हुए कहा कि तेंदूपत्ता तुड़ाई से जहां एक पत्ते से मजदूर को मात्र 5 से 10 पैसे का ही लाभ होता है तो वहीं ठेकेदारों को इस एक पत्ते के बीड़ी में तम्बाखू डालकर बेचने से 5 रुपए से अधिक का लाभ होता है। तेंदूपत्ते से बनी बीड़ी का प्रयोग सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग ही करते हैं। बीड़ी के प्रयोग से वे कैंसर, दमा, फेफड़े के रोग, स्वांस जैसे गम्भीर रोग से ग्रसित हो जाते हैं और असमय ही काल के ग्रास में चले जाते हैं। पूरे देश में इस समय बीड़ी व तम्बाखू सेवन से लाखों लोगों की मौत असमय ही हो जाती है और आर्थिक क्षति अलग से उठानी पड़ती है।
उन्होंने आगे कहा कि तेंदूपत्ता से न मजदूरों को लाभ होता है न सरकार को, इसका लाभ केवल ठेकेदारों को होता है। इसके विपरीत यह तेंदू का फल पौष्टिक व बलवर्धक होता है। इसके फल व पत्ते पेट रोग में बेहद कारगर हैं। इसके बीज से भरपूर मात्रा में तेल प्राप्त होता है। इसके छिलकों से धुंआ रहित ज्वलनशील ईंधन प्राप्त होता है। इसके साथ ही इसका पेड़ भारतीय सेना के अस्त्रों के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
ज्ञात हो कि वनोपज संग्रहण के आंकड़े में छत्तीसगढ़ का देश में प्रथम स्थान पर है। पहले केवल 7 प्रकार के वनोपज का संग्रहण किया जाता था जबकि आज 23 प्रकार के वनोपज का संग्रहण किया जा रहा है। भविष्य में और भी वनोपजों का संग्रहण कर लोगों के रोजगार व सरकार अपनी बजट में वृद्धि कर सकती है।