लेखक की कलम से

वो कौन था …

जिसने लाद दिया फूलों को पहले पहल,

खूबसूरती के उच्चतम उपमानों से

और कांटे हो गए अभिशप्त;

किसी दैत्य से

अहित करने वाले,

जबकि एक ही डाल के परपोषी हैं दोनों !

 

वो कौन था ?

जिसने मेहँदी लगे हाथों को,

दुनिया का सबसे खूबसूरत नक्शा बताया;

और गोबर- राख की रगड़ से बनी रेखाएँ

उपेक्षित रह गईं-

प्रिय चुम्बनों से !

 

वो कौन था ?

जिसने नवजातों को मोम समझ,

डिजाइनर बेबी का साँचा बनाया

और धूल धक्कड़ में खेलते,

पोखरों, तालाबों में नहाते बच्चों को

डिजाइनर बेबी के लिए,

अन्हाइजेनिक बताया!

 

वो कौन था ?

जिसने सौन्दर्य को सूरत में देखा,

सीरत को हाशिए पर धकेला,

देह को उपभोग का यन्त्र बताया

और बाजारों को सौन्दर्य प्रसाधनों से,

बेहिसाब पाटने का जिम्मा उठाया !

 

वो कौन था ?

जिसने सबसे पहले-

ढलती उम्र को कुरूप बताया,

और झुर्रियों को,

प्लास्टिक सर्जरी उद्योग का

रॉ मटेरियल बनाया !

फिर उम्र से दस साल छोटा होने का सपना दिखाया !

 

वो जो भी था,

उसने ही शब्दों को सुन्दर और असुन्दर

में बांटा,

एक को किया सर्वथा तिरस्कृत;

दूसरे को स्वीकृत किया, साधा,

एक रेखा खींच दी उसने,

सामूहिक छल से !

जिसके पार केवल

बाजारू विज्ञापन के

चश्मे से देखा जा सकता है…

 

©दीप्ति पाण्डेय, भोपाल, मध्यप्रदेश

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