लेखक की कलम से

सुखद पुनर्निर्माण …

“अच्छे विचारों, अच्छे गुणों और अच्छे लोगों को सहेज कर रखना होगा, यही आज युग धर्म है”

‘माइंड योर माइंड’ बहुत सुंदर विचार है। हमारे दिमाग में ही विचारों का अंकुरण होता है और यह विचार हमारे दृष्टिकोण से सही और गलत कार्यों में परिणित होते हैं।

विचारों की प्रकृति और क्वालिटी का जागरूक रहकर प्रतिक्षण सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी है कि हमारे विचारों की दिशा क्या है सकारात्मक या नकारात्मक।

मनुष्य विचारों का पुंज है। स्वर्ग नरक कहीं अलग नहीं, हमारे विचारों में ही है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा कि” व्यक्ति के जैसे विचार होते हैं, वह वैसा ही बन जाता है”

अच्छे विचारों, अच्छे गुणों और अच्छे लोगों को सहेज कर रखना होगा, यही आज युग धर्म है।

हमको आधुनिक युग में सब कुछ इंस्टेंट पसंद है ‘ त्वरित”

हमारी मानसिकता भी हो गई है अधीर, फास्ट, तुरंत स्वाइप करने की, गैजेट्स में तुरंत स्क्रोल कर एक टच में पूरी सृष्टि को घूम लेने की।

इंस्टेंट फूड, फास्ट फूड हमारा जीवन शैली में शामिल हो गया है और उसी तरह हमारी मानसिकता भी हो गई है त्वरित प्रक्रिया देने की।त्वरित प्रतिक्रिया देने से कई दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। हमें माइंड करना होगा कि क्यों सचमुच हम इतने व्यग्र हैं, उग्र हैं और त्वरित हैं कि बिना चिंतन विमर्श किए , बिना परिणाम का आकलन किए हुए प्रतिक्रिया देने में! परिस्थिति ,वस्तु या व्यक्ति से कोई असंतोष, नाराजगी, क्रोध के इन कमजोर क्षणों से उत्पन्न निराशा – अवसाद, हताशा, बेबसी, असफलता में थोड़ा रुकना, थोड़ा धैर्य, थोड़ी सद्बुद्धि ,संयम जरूरी है।इन कमजोर लम्हों को गुजार देने के लिए, इनसे बाहर निकल आने के लिए कुछ अच्छा पठन-पाठन , सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए लोगों का संपर्क , सत्संग करें, प्रकृति का सानिध्य लें , प्रकृति के हर तत्व में वह ताकत है जो आपको जीवंतता से लबरेज कर दे। पक्षियों का मधुर संगीत कलरव हो या फिर बहते झरने, नदी का तरंगित ,आनंदित करता, उछलता पानी का मधुरम संगीत।

हरियाली का रूप या फिर खिलते हुए सुंदर फूलों का स्वरूप।

मधुर संगीत यानी म्यूजिक थेरेपी जरूर हर दिन शामिल करें। ध्यान – अध्यात्म, व्यायाम ,सही खानपान बेहद आवश्यक है। थोड़ा मित्रों से ,अपनों से बातचीत करें। अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करना सीखें।

 

 

“एकांत साधना सुखद पुनर्निर्माण के लिए”

अपने समय का बेहतरीन उपयोग करने के लिए अपनी हॉबीज की तरफ बढ़े। अभिरुचियों को निखारें ,संवारें और बेहतर से बेहतर, कुछ नया कर दिखाने की खुशी को अपनाएं। रचनात्मकता जिंदगी का बहुत आवश्यक अंग है।

भावनाओं की अभिव्यक्ति बहुत आवश्यक है अपनों से, मित्रों से और स्वयं से।

स्वयं से वार्तालाप करने के लिए डायरी एक अच्छी दोस्त है।अपने मनोभावों को व्यक्त करें।अपने अनुभवों को दिन प्रतिदिन डायरी में साझा करें।अच्छी पुस्तक, अच्छा साहित्य, चिंतन विमर्श पठन-पाठन, लेखन प्रतिदिन जिंदगी में शामिल हो, अंतर्मन प्रकाशित हो, विवेक वान हो ,तो हमें सहारों की जरूरत नहीं है।रोशनी और उम्मीदों की किरण हैं अच्छी पुस्तकें।

तू ही सागर तू ही किनारा।

ढूंढता है तो किसका सहारा।।

 

” हमारी संतुष्टि की सीमा क्या है ”

आधुनिक दौर ने जिस तरह भौतिक सुख सुविधाओं के पीछे झूठे आडंबर, बनावट, शान शौकत, व्यर्थ होड़, प्रतिद्वंदिता की ओर बेतहाशा अंधी दौड़ लगाना सिखाया है, उसने बहुत असंतोष और अवसाद, निराशा उत्पन्न की है मानव जीवन में और इसी कारण लाइफ़स्टाइल जनित बीमारियों में वृद्धि हुई है।इसकी जगह सहज, सरल और संतुलित, सादगी पूर्ण जीवन शैली और उच्च विचार ही लाभदायक हैं और रहेंगे। कईयों से बेहतर बहुत कुछ है हमारे पास, निरंतर उस सृष्टि निर्माता का आभार प्रकट करने के लिए, अनुग्रहित रहने के लिए।

छोटी छोटी ख़ुशियां के छोटे-छोटे पल बहुत महत्वपूर्ण है ज़िंदगी को ख़ुशनुमा बनाने, आत्मिक सुकूं- शांति के लिए।

और फिर हमें यह नहीं कहना पड़ेगा कि “लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई”

 

सिर्फ एक लम्हा जिस पर लिखा है “जीत की तैयारी”। हार

एक क्षण है पूरी जिंदगी नहीं।

 

जीत है आगे आने वाले तमाम लम्हों में कहीं न कहीं जीत शब्द का दर्ज हो जाना।

और सच मायने में सफलता स्वयं में सकारात्मक बदलाव और दुनिया में सकारात्मक बदलाव ही है।

हमें यह तय करना है कि हमारी संतुष्टि की सीमा क्या है!

 

“क्षण क्षण के तानों बानो से बुनी है जिंदगी”

इन्हीं लम्हों पर सुख-दुख, आशा- निराशा, सफलता – असफलता जीत -हार, निराशा -अवसाद भी दर्ज हैं। जिंदगी है तो ख्वाब हैं और इन ख्वाबों को सच करने के लिए हमें आंखें खुली रखना चाहिए। अपनी क्षमताओं का, प्रतिभा का, कुशलता और संसाधनों का सही आंकलन करने के बाद ही किसी क्षेत्र में हमारी सफलता सुनिश्चित होती है।

 

  ©अनुपमा अनुश्री, भोपाल, मध्य प्रदेश   

 

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