लेखक की कलम से
नफरतों को छोड़िए …
नफरतों को अब छोड़िए, क्योंकि हमें देश को बचाना है।
कोई गैर न तोड़ें ये एकता, हमें एक दूजे को समझाना है।
देख रहे हम, क्या हो रहा है, चाल दुश्मन की समझें अब;
समृद्ध होते देख वतन को, उसे तो आग में घी मिलाना है।
नफरतों को छोड़िए……
हो न जाए देर, कहीं फिर से, इतिहास को समझिए तो;
पहले भी किया दुश्मन ने ये, उसे हमें आपस में लड़ाना है।
नफरतों को छोड़िए …
छोटी-छोटी बातों को हम तुम, आपस में सुलझाया करें;
मौके की तलाश में जो रहता, उसको माटी में मिलाना है।
नफरतों को छोड़िए …
अब भी वक्त है संभलकर रहें, तोड़ना जो चाहे हमें ऐसे;
हमको एकजुट हो अब, सबक उसे ही खूब सिखाना है।
नफरतों को छोड़िए …
©कामनी गुप्ता, जम्मू