धर्म

महिलाओं के सम्मान से जुड़ा है लोहड़ी का पर्व

इस बार लोहड़ी और गणेश चतुर्थी के एकसाथ होने का संयोग

सोलन। 2020 की लोहड़ी कुछ खास है। क्योंकि इस बार लोहड़ी और गणेश चतुर्थी व्रत एक साथ है। लोहड़ी देश के उत्तर प्रांत में ज्यादा मनाया जाता हैं। इन दिनों देश में पतंगों का तांता लगा रहता है। देश में भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्यौहार का आनंद लिया जाता है। लोहड़ी पौष माह की अंतिम रात को व मकर संक्राति की सुबह तक मनाया जाता है। यह प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इस साल 2020 में यह त्यौहार 13 जनवरी को मानाया जायेगा।

त्यौहार भारत देश की शान हैं। हर एक प्रांत के अपने कुछ विशेष त्यौहार हैं। इन में से एक है लोहड़ी। लोहड़ी पंजाब प्रांत के मुख्य त्यौहारों में से एक है जिन्हें पंजाबी बड़े जोर-शोर से मनाते हैं। लोहड़ी की धूम कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है। यह समय देश के हर हिस्से में अलग-अलग नाम से त्यौहार मनाये जाते हैं। जैसे मध्य भारत में मकर संक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगलका त्यौहार व काइट फेस्टिवल भी देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है। मुख्यतः यह सभी त्यौहार परिवार जनों के साथ मिल जुलकर मनाये जाते हैं, जो आपसी बैर को खत्म करते हैं।

 सामान्तः त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ- साथ मनाये जाते हैं। जैसे लोहड़ी में कहा जाता हैं कि इस दिन वर्ष की सबसे लम्बी अंतिम रात होती है। इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है। साथ ही इस समय किसानों के लिए भी उल्लास का समय माना जाता है। खेतों में अनाज लहलहाने लगते हैं और मौसम सुहाना सा लगता है, जिसे मिल-जुलकर परिवार व दोस्तों के साथ मनाया जाता है। इस तरह आपसी एकता बढ़ाना भी इस त्यौहार का उद्देश्य है।

ऐतिहासिक कथा तथा पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जामाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने अपनी आपको अग्नि में समर्पित कर दिया था। उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में प्रति वर्ष लोहड़ी पर मनाया जाता है और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिये जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता है। इसी ख़ुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओं को बाँटा जाता है।

लोहड़ी के पीछे एक ऐतिहासिक कथा भी है जिसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता है। यह कथा अकबर के शासनकाल की है। उन दिनों दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त का सरदार था, इसे पंजाब का नायक कहा जाता था। उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। वहाँ लड़कियों की बाजारी होती थी। तब दुल्ला भट्टी ने इस का विरोध किया और लड़कियों को सम्मानपूर्वक इस दुष्कर्म से बचाया और उनकी शादी करवाकर उन्हें सम्मानित जीवन दिया। इस विजय के दिन को लोहड़ी के गीतों में गाया जाता हैं और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता है।

पंजाबियों का विशेष त्यौहार है लोहड़ी, जिसे वे धूमधाम से मनाते हैं। नाच-गाना और ढोल तो पंजाबियों की शान होते हैं और इसके बिना इनके त्यौहार अधूरे हैं।

लोहड़ी खेती खलियान से भी जुड़ा है। लोहड़ी में रबी की फसलें कटकर घर आती हैं। लोहड़ी में खासतौर पर इन दिनों गन्ने की फसल बोई जाती हैं और पुरानी फसलें काटी जाती हैं। इन दिनों मूली की फसल भी आती हैं और खेतों में सरसों भी आती हैं। यह ठंड की बिदाई का त्यौहार माना जाता है।

लोहड़ी में गजक, रेवड़ी, मुंगफली आदि खाई जाती हैं और इन्हीं के पकवान भी बनाये जाते हैं। इसमें विशेषरूप से सरसों का साग और मक्का की रोटी बनाई जाती है और खाई व प्यार से अपनों को खिलाई जाती है। लोहड़ी बहन-बेटियों का त्यौहार है।

इस दिन बड़े प्रेम से घर से बिदा हुई बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है और उनका आदर सत्कार किया जाता है। पुराणिक कथा के अनुसार इसे दक्ष की गलती के प्रयाश्चित के तौर पर मनाया जाता है और बहन-बेटियों का सत्कार कर गलती की क्षमा मांगी जाती है। इस दिन नव विवाहित जोड़े को भी पहली लोहड़ी की बधाई दी जाती है और शिशु के जन्म पर भी बधाई दी जाती है।

लोहड़ी के कई दिनों पहले से कई प्रकार की लकड़ियाँ इक्कट्ठी की जाती हैं। जिन्हें नगर के बीच के एक अच्छे स्थान पर जहाँ सभी एकत्र हो सकें वहाँ सही तरह से जमाई जाती है और लोहरी की रात को सभी अपनों के साथ मिलकर इस अलाव के आसपास बैठते हैं। कई गीत गाते हैं, खेल खेलते हैं, आपसी गिले शिक्वे भूल एक दूसरे को गले लगाते हैं और लोहड़ी की बधाई देते हैं। इस लकड़ी के ढेर पर अग्नि देकर इसके चारों तरफ परिक्रमा करते हैं और अपने लिए और अपनों के लिये दुआयें मांगते हैं। विवाहित लोग अपने साथी के साथ परिक्रमा लगाती हैं। इस अलाव के चारों तरफ बैठकर रेवड़ी, गन्ने, गजक आदि का सेवन किया जाता हैं और यहीं इस दिन को नववर्ष के रूप में भी मनाते हैं।

  आज भी लोहड़ी की धूम वैसी ही होती है, बस आज जश्न ने पार्टी का रूप ले लिया हैं और गले मिलने के बजाय लोग मोबाइल और इन्टरनेट के जरिये एक दूसरे को बधाई देते हैं। बधाई संदेश भी व्हाट्स एप और मेल किये जाते हैं।

लोहड़ी के त्यौहार को इस तरह पुरे उत्साह से मनाया जाता हैं. देश के लोग विदेशों में भी बसे हुए हैं जिनमें पंजाबी ज्यादातर विदेशों में रहते हैं इसलिये लोहड़ी विदेशों में भी मनाई जाती हैं।

लोहड़ी के अवसर पर अनंत गुरू कुल मैमोरियल स्कूल, जुगियाल, पठानकोट में विद्यार्थियों ने स्कूल की प्रधानाचार्य श्रीमती आशु शर्मा और स्कूल के अध्यापकों ने धूमधाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया।

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