लेखक की कलम से

अवसरों के किवाड़ …

 

जीवन के मंथन में,

चिंतन के स्तरों से

बीतते गुज़रते,

धकियाते, परिस्थितियों के

तूफानों से

मनन के

बवंडरों से जूझते,

बोझिल कदम, रिक्त हृदय

उस शांत, मगर पुख़्ता

चोटी की अभिलाषा को,

ज़ेहन के कोनों मे दबाए

चलते,

विरक्ति की नदी के

किनारे किनारे,

विरोधों के ज्वालामुखी में

चिंताओ के दरख्त,

चिलचिलाते दिखे

दूर कहीं,

शुष्क चाहतों के

जंगलों के बीच,

तब कहीं

निशां मिले जाकर,

अवसरों के किवाड के ।

 

©डा. मेघना शर्मा                       

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