थेरिगाथा: स्त्री संघर्ष की गाथा …
थेरीगाथा बौद्ध भिक्षुणियों द्वारा संघ प्रवास के दौरान लिखी गई कविताओं का संकलन है। बौद्ध साहित्य में इसे सुत्त पिटक के खुद्दक निकाय के नवें खंड के रूप में संकलित किया गया है। कविताओं की कुल संख्या 73 है। इनकी भाषा पाली है। थेरवाद सम्प्रदाय से सम्बंधित होने की वजह से इन भिक्षुणियों को थेरी कहा गया और इनकी कविताओं का संकलन थेरिगाथा कहलाया। स्त्रियों के अनुभव संसार का यह गीतों का अनूठा संकलन है जो उनके सुख-दुख, इच्छा-अनिच्छा, महत्वाकांक्षाओं, संवेदनाओं का परिचय हमें देता है। यह एकमात्र ऐसा धार्मिक साहित्य है जिसे एकाकी रूप से स्त्रियों के द्वारा रचा गया। अधिकांश थेरियाँ गौतम बुद्ध की समकालिक बातई गयी हैं। मोटे तौर पर उसी समय के समाज का प्रतिविम्बन इन कविताओं में है।
थेरी उब्बिरी श्रावस्ती के कुलीन परिवार से थी। अपनी पुत्री जीवा की असमय मृत्यु से शोकग्रस्त वह विलाप करती हुई बुद्ध के पास पहुँचती है। बुद्ध के साथ उसका संवाद गाथा में दर्ज है :
हे! उब्बिरी
तुम जो
रूदन करती फिरती हो
जंगल में
लगाती हो
पुकार
ओ जीवा!
ओ मेरी प्यारी पुत्री
स्वयं में आओ
करो आत्मसाक्षातकार
देखो न!
इस कब्रगाह में
दफ़न हैं
सहस्त्रों-सहस्त्र
प्यारी पुत्रियाँ
और
सब की सब
पुकारी गई हैं
उसी एक नाम (जीवा) से
जिसके लिए तुम करती हो
विलाप।
थेरीगाथा के भावनात्मक उद्गारों को समझने के लिए बौद्ध धर्म का अध्येता, स्त्रीवादी विमर्शकर्ता अथवा शोधार्थी होना अनिवार्य नहीं है। एक सामान्य पाठक भी थेरीगीतों को पढ़कर उन्हें सराहता है और उनके साथ भावनात्मक एकात्म स्थापित करता है। वास्तव में थेरीगाथा की यही शक्ति है। इसीलिए मौजूदा दौर में ये गाथाएँ जितनी इतिहास और साहित्य के लिए जरूरी है उतनी ही समाज के लिए भी।
एक अन्य गाथा में सुजात और वाशिष्टि का संवाद इस प्रकार है :
सुजात
————
विगत अतीत में
रोती थी तुम जार जार
मृत पुत्रों की याद में
निरंतर बार -बार
कहो! ब्राह्मणी वाशिष्टि
अब खोकर सात पुत्रों को
कैसे है
तुम्हारा संयम बरकरार
अब न होती हो उदास
न बहे आंसुओं की धार।
वाशिष्टि
————
हे ब्राह्मण
हम दोनों की सैकड़ों संतानें और रिश्तेदार
काल की भेंट चढ़े
अतीत में
न जाने कितनी बार
पा लिया है
जन्म-मरण मुक्ति का मार्ग अब
इसलिए
न रहती हूँ उदास
न ही रोती
न बिलखती हूँ
बार-बार
विश्व कविता दिवस की शुभकामनाएं..
©नीलिमा पांडेय, लखनऊ