लेखक की कलम से
खुद को न खो दूं मैं. . .
खुले आकाश सी थी मैं।
स्वच्छंद हवा की तरह बहती थी।।
पर तुम में आकर सीमित हो गई।
विस्तृत हो तुम इतने जो।।
समा लिया मुझे खुद में।
तुम्हारी ये खामोशी और।।
दूसरी तरफ चाह मेरी।
फिर गुमनाम बना देगी।।
रोक लो मुझे अभी तुम।
ख्वाब जीने के हैं बाकी।।