लेखक की कलम से

चिताएँ …

एक लाश की सूचना

लाश की सूचनाओं पर क़ाबिज़ है

तांत्रिक के हाथों हर मंत्र मृत

 

सूचनातन्त्र के इंजेक्शन से

रक्ततंत्रिकाएँ फड़फड़ाती है

धमनियाँ

किसी की तेज़,

किसी की मद्धम

किसी की शून्य

 

मैं

शून्यवाद में भटकती

कोई हलचल ढूँढती हूँ

चारों ओर यन्त्रजीवित शरीर

चिताओं के धूएँ से अभिमन्त्रित

सुरक्षित घेरे में

विचरण करते हुए

ज़ोम्बीज़ से दिखते हैं

 

मैं बौखलाई सी विचरती हूँ

तटस्थ सिद्धि के लोक निर्माण को ध्वस्त करने के लिए

पहली चेतना का आवाह्न करती हूँ

पहली नँगी लाश पर भी

हज़ार-हज़ार मौतें मरती हूँ

तो….

हज़ार-हज़ार बार हँसती भी हूँ

तुम्हें पहली बार पैदा करने पर

 

बताओ न राजतांत्रिक

कहो न कापुरुष

तुम्हें  अपनी धौंकनी के लिए

कितने और तमाशे

कितनी और लाशें

कितनी और जलती चिताएँ चाहिए …..?

 

 

©पूनम ज़ाकिर, आगरा, उत्तरप्रदेश

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