लेखक की कलम से
आँख से झरना निकल जायेगा ….
गज़ल
आस्माँ पे मेघ छाने को है,
जाने कब मौसम बदल जायेगा।
चाहतो का मौसम आने को है,
जाने कब ये दिल मचल जायेगा।
सोंधी सी खुशबू फिजाओ में है,
फिर कही गुल यूँ बहल जायेगा।
साथ में हम तुम बिताये कुछ पल,
वरना ये लम्हा फिसल जायेगा।
इन्तज़ार का वो आलम जैसा हो,
बेकरारी में संभल जायेगा।
इस जमाने के सितम कुछ कम नहीं,
आँख से “झरना” निकल जायेगा।
©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड