लेखक की कलम से

प्रेम का पाठ पढ़ाये रे…

कहते हैं कि प्रेम को शब्दों में बयां करना जितना मुश्किल है, महसूस करना उतना ही आसान है। आपको कब, कहॉ और कैसे प्रेम हो जायेगा यह आप खुद नहीं जान पाते..! पुराने समय के प्रेम और आजकल के प्रेम का स्वरूप बदला जरूर है परंतु भावनाएँ यथावत् हैं। एक युवा कवि की प्रेम के प्रति जो भावनाएँ हैं उन्हें शब्दों में पिरोने की कोशिश हुई है….

 

मुच-मुच-मुच मुस्काये रे,

परदेशी सजनियॉ।

गाँव की गोरी वो शहर की रनियाँ,

धक-धक जिया धड़काये रे,

परदेशी सजनियॉ।।

 

जब से देखा मेले में उनको,

गुपचुप खाती ठेले में उनको।

रह-रह मन ललचाये रे,

परदेशी सजनियॉ।।

 

चहक-चहक जब बोला करती,

उलझे लट जो गालों पे चढ़ती।

कान के पिछ्छू ले जाये रे,

परदेशी सजनियॉ।।

 

करके इशारा मुझको बुलावे,

मृग नैनन से बाण चलावे।

प्रेम का पाठ पढ़ाये रे,

परदेशी सजनियॉ।।

©प्रेमिश शर्मा, कवर्धा, छत्तीसगढ़

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