लेखक की कलम से

स्मरण हुआ जब मुझको मां …

स्मरण हुआ मुझको जब मां! तेरा अंक

सारा आनंद घना

मुझको ज्यों कष्ट बना

क्रियाएं लगीं मुझे ज्यों हो आतंक.

सारे जो रंगे-रंगे, खेल के पदार्थ लगे

बिच्छू-से मानों वे मार रहे डंक.

मां ! उतार मलिन वस्त्र

कर दे तू मुझे स्वच्छ ,

तेरी मैं वही पुत्री जो थी अकलंक.

खिला- पिला मुझे बुला

दे मां ! तू मुझे सुला,

कितना सुखदायी है तेरा अंक

सारे मैं शूल भूल, सारे मैं फूल भूल

छाती से लग सो जाऊंगी नि:शंक .

मां ! तू लगती सचमुच, मेरा जो है सब कुछ

तुझको पा रहता है कोई क्या रंक ?

©आशा जोशी, लातूर, महाराष्ट्र                                     

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