लेखक की कलम से

चलो ना एक समझ कर साझा करते हैं …

 

समझे तो कितनी सहज बात है

मैं यहां, तुम वहां, कोई ओर कहां, कोई ओर कहां,

हमारे सबके पास बहुत कुछ अपना निजी है,

अलग पहाड़, अलग नदियां,

अलग खेत खलिहान

 

पर हम सब एक ही सूरज, एक चांद, एक सी हवा, ओर एक ही आसमान क्यूं साझा करते हैं,

वहां क्यूं वैमनस्य रहता है ? अधिकार भावना छंटती नहीं,

ये भी तो अलग अलग होने चाहिए..!

प्रार्थना, प्रेयर, इबादत, अरदास

 

इन सारी क्रियाओं की मंज़िल उस अर्श की चौखट है

 “जहां एक विश्व शक्ति विराजमान है”

 

उसे क्यूं हमने कई हिस्सों में बांट लिया है ?

चलो ना एक समझ कर साझा करते हैं।।

©भावना जे. ठाकर

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