लेखक की कलम से
दरिया …
वक्त का दरिया
बहता रहा, बहता रहा
हम तिनके की तरह
डूबते उतराते रहे
दर्द के नक्श कुछ रह गए
जमीं पर दिल की
कुछ मुरव्वत में मेरी
साथ साथ आते रहे
आइना क्या टूटा
अक्स भी बिखरते गए
अपनी तस्वीर हम
जोड़ते मिलाते रहे।
©मधुश्री, मुंबई, महाराष्ट्र