लेखक की कलम से

दिल बेचारा …

कई गमों ने मारा किस किस का नाम लूं

है दिल मेरा बेचारा क्यों कर न थाम लूं

 

कोई बताए मुझको इस गम की कुछ दवा

है नहीं कोई दवा तो मैं दुआ से काम लूं

 

इस दर्द ए गम ने इतना तोड़ा है मुझे

दिल करे ये मेरा अब हाथों में जाम लूं

 

उल्फत करेगा कौन मुहब्बत के नाम पर

बेहतर है क्यों न मैं बेवफा मुकाम लूं

 

दिन तो गुज़र ही जाएगा काम धाम में

मैं गम ए फुरकत की क्यों न शाम लूं

 

पूछे है मुझसे दुनिया किसने किया बर्बाद

तू ही बता दे हमदम कैसे तेरा मैं नाम लूं …

 

©खुशनुमा हयात, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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