लेखक की कलम से

नया सवेरा

लाल रंग के रथ पे सजे हैं
श्वेत रंग का वेश
वो निकल रहे हैं।

आते हैं वो रोज सही है
आज लालायित केश
वो निकल रहे हैं

गली-गली में खुशी मची है
और मिटे सब द्वेष,
वो निकल रहे हैं

चांद खुशी है आप खुशी हैं
और खुशी अनिमेष
वो निकल रहे हैं

नये वर्ष का नया सवेरा
करो नये से श्रीगणेश
वो निकल रहे हैं

फेंक दे अपने मन से
ऐ मनुज बीते वर्ष का क्लेश
वो निकल रहे हैं

©पंकज तिवारी, नई दिल्ली

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