लेखक की कलम से

मैं आर्यावर्त हूँ …

 

हाँ मैं आर्यावर्त हूँ मैंने देखा अपना इतिहास।
सतयुग से कलयुग तक का मैंने देखा है अपना इतिहास।

मैन देखा कच्छप, मीन को लेकर विष्णु रूप अवतार।
सृष्टि के रक्षा के खातिर उनका देखा है अवतार।।

मैने देखा नरसिंह रूप को पत्थर फाड़कर होते प्रकट।
आतताई के कर्मो का हिसाब जो कर देते होकर प्रकट।।

मैन देखा रूप शंकर का जिनके हैं त्रिनेत्र विशाल।
औघड़ वाला चेहरा देखा जिसमे लिपटा है सापों का हार।।

उस आलौकिक रूप को देखा जिसमे छिपे हैं कितने राज।
जिनके त्रिसूल और डमरू पर ही टिका हुआ है मेरा भार।।

मैंने देखा हरिशचंद्र को सत्यपथ था जिनका आधार।
डोम घर बिककर भी सत्यपथ रहा जिनका राह ।।

मैन देखा सरयू का धारा अवध पूरी का पावन धाम।
भागीरथ की वो कठिन तपस्या गंगा आई मेरे धाम।।

मैने देखा अज पुत्र को सब्दवेधी चलाते वाण।
अपने ही सब्दों में फँसकर त्यागते हुए अपने प्राण।।

मैंने देखा उस बालक को शिवधनुष का करते संधान।
रावण जैसे अजेय को भी भेजते हुए प्रभु के धाम।।

मैन देखा लखनलाल को और देखा था वीर हनुमान।
चरण पादुका को देखा था जिसको पूजे भरत महान।।

मैंने देखा लीलाधर को वृंदावन में छेड़ते तान।
हाथ सुदर्शन उनके देखा जब बचाना मेरा सम्मान।।

मैने देखा धर्मराज को और देखा भीम बलवान।
गांडीव वाला अर्जुन देखा और देखा है कर्ण महान।।

मैन देखा चंद्रगुप्त और देखा वो अशोक महान।
भगवान बुद्ध, महावीर देखा और देखा पृथ्वीराज का वाण।।

शंकर और विवेक को देखा और देखा वो काली पुत्र।
सुभाष आजाद और भगत को देखा और देखा वो गाँधीपुत्र।।

समय समय पर आते रहना आर्यावर्त के मेरे सपूत।
जब भी मुझपर विपदा आये बराह रूप लेकर आना मेरे सपूत।।

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद      

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