लेखक की कलम से

इश्क़ का रंग चढ़ा जबसे …

 

 

पिया मोहे रंग जो तेरा लागा

रंग दूजा कोई भाये ना

इश्क़ का रंग चढ़ा जबसे

रंग और कोई चढ़ पाये ना।

 

रंग लगावन सखियां आवैं

गावैं होली गीत मल्हार रे

एक वही बैरी सजना मोरा

मोहे रंग लगावन आये ना।

 

नैनन छवि तुम्हारी सजना

बसीं है रोंम रोंम यादें तेरी

जब से तुम समाये नैनन में

अब कोई और समाये ना।

 

हाथ गुलाल लिए बैठी

बस एक आवाज़ में टेर करे

तड़प समझ रहा ना जालिम

बैरी मोहे पास बुलाये ना।

 

अब इंतजार ना होता मोरे से

कर सोलह श्रृंगार चलूं

जाकर उसे बाहों में भर लूं

अब ये दूरी मनै सुहाये ना।

 

जी भर प्यार करूं ‘राजेश’

ना रहे मलाल गुलाल में

इस प्यारे से बंधन को

किसी की लगे नज़र रब हाये ना।

 

©राजेश राजावत, दतिया, मध्यप्रदेश

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