लेखक की कलम से

रंग जीवन के …

 

रंग बहुत हैं जीवन में जो बदलते रहते   क्षण में मात्र ।

कभी दिखता सुखद अनुभूति या कड़वी घुट पिलाता क्षण में मात्र।।

 

रिश्तों के गहराई में कभी ला देता मतभेद का सैलाब ।

या फिर कभी कुछ अच्छा करके बढ़ा देता आपसी सौहार्द।।

 

इंद्र धनुषी रंग भी फीका जब किलकार उठता परिवार ।

रजनी के तम से भी गहरा जब छूटता अपनो का साथ।।

 

आपाधापी चलता रहता है क्षणभंगुरी जीवन  के साथ साथ ।

मृदु और कटु अनुभव संग जीवन नैया चलता साथ।।

 

रंग बदलते जीवन मे मिलते हैं अपनो का प्यार ।

कभी चमक तो कभी अश्रु बन याद दिलाता अपनो का प्यार ।।

 

रंग स्याह तब होता है जब मिलता अपनो का विछोह ।

हृदय पीड़ बनकर आता है अपनो का मिला विछोह।।

 

नील गगन का रंग एक है सूरज और चंदा का भी एक रंग ।

फिर जीवन मे रंग अलग क्यों बदलता है क्यों जीवन के रंग।।

 

 

रंग रंग के चक्कर मे हम भी तो बदलते हैं रंग ।

गिरगिट मकड़ी पीछे छुटे जैसे मानव बदले रंग।।

 

मानव जीवन एक बार है रिस्ते की गहराई अनंत ।

मोल तोल कर रिस्ते घटते मानव के करनी के संग।।

 

रंग भरें बेसक जीवन में खुशियां ही खुशियाँ भरमार।

जीवन पथ पर चलकर जाना सत्कर्म का लिए भरमार।।।।

 

©कमलेश झा, फरीदाबाद                        

Back to top button