समानता …
पाषाणिक ह्रदय कहलाने वाले मर्द
कहते हैं कि इन्हें दर्द नहीं होता
फर्ज के आगे इन्हें कोई मर्ज नहीं होता
पर सिर्फ पुरुष मात्र कहलाना
दर्द ना होने की वजह तो नहीं
ये भी टूटते-सिमटते, उलझते-सुलझते, निखरते-बिखरते हैं
किसी कोने में, तन्हाइयों में
किसी अपरिचित इंसान को जीते हैं
सामाजिक बेड़ियों का दु:ख इन पे भी बीते हैं
कर्तव्य पथ पर यू दौड़ कर
हर ख्वाइशों को तोड़ कर
पसीने की बूंद से खुद को सिंचे है
अपनी संवेदनशीलता को दफनाते हैं
जिम्मेदारियों के बोझ तले हर उलझन को अपनाते हैं
उलझनों में भी यह जगमगाते हैं
हां यह वही मर्द हैं जो सूखी आंखों से, सिसकते दिल से हर रिश्ते को निभाते हैं
जिंदगी की तो सीख यही
हर किसी को एक ही तराजू पर तौलना ठीक नहीं
जिंदगी रूपी वाहन के स्त्री और पुरुष रूपी दो पहिए हैं
ना तो किसी को अत्याचार का अधिकार है
नहीं किसी को सहने का संस्कार
संघर्ष तो सब करते हैं चाहे नर हो या नारी
जलती चुभती वाक्यांश का फिर क्यों चलाते आरी
एक दूसरे का सम्मान करो, करो बंदगी
बस यही तो है एक खुशहाल ज़िन्दगी
बस यही तो है एक खुशहाल जिंदगी
©ज्योति कुमारी, झुन्नी कला, पूर्णिया बिहार