लेखक की कलम से

चले आओ …

 

 

कभी बैठों आकर मेरे पास

मेरी चुप्पी को सुनो।

जो नराज़ हैं तुमसे

उस धड़कन को सुनो।

 

मत कहना कुछ भी,

मत देखना मेरी तरफ।

लेकिन अपनी उंगलियों से

छूना मेरी उंगली को।

देखना सैलाब को बहते हुए..

 

कुछ मत बोलना,

एक लफ्ज़ भी नहीं..

बस बैठे रहना

जब तक मैं बोलूँ न..

मेरा दर्द सुन लेना।

 

शायद तुम्हें नहीं पता

पर तुम अब भी मुझे मना सकते हों।

मैं इंतेज़ार में हूँ तुम्हारे

और तुम गुमान में।

मैं रूठी हूँ तुमसे।

तुम्हारा नज़रअंदाज़ करना

मुझे पहले से भी ज्यादा

दर्द देता हैं।

 

मैं सब भूल जाऊँ..

तुम एक बार मनाने आओ,

कुछ न कहो..

बस चले आओ..।

©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

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