लेखक की कलम से

कदम पड़े जो पत्थर पर …

 

घनघोर घनेरी घटा हो बादल का या सनसन हो पूर्वा बयार।

या फिर तपती रेत धूप हो  या फिर गिरता हो मुशालाधार।।

कदम पड़े  जो पत्थर पर पड़ता जाए अमिट छाप।

पग बाधा को तोड़ कर मानव छोड जाओ एक अमिट छाप।।

 

धीर धरो जो मन में तो हासिल कर सकते तुम जीत।

हिम्मत और साहस से  गढ़ सकते तुम फिर नई एक जीत।।

 

तिमिर तोम तुम हर सकते हो ज्ञान दीप  का फैलाकर प्रकाश।

अँधकार की काली छाया छट जाएगी अपने आप।।

 

सिल पर परे निशान की गाथा गाएगी फिर शोर मचा।

मानव तेरी अमर कहानी का कृति पताका लहरेगी आप।।

 

पत्थर के सीने से  पानी फिर चीरकर जब लोगे निकाल।

इतिहास तुम्हें  भी भागीरथ कहकर पुकारा लेगा फिर अपने आप।।

 

नीजस्वार्थ को पीछे रखकर दधीचि बनने को हो तैयार।

तेरे भी हड्डी से फिर बज्र और पिनाक तो हो सकता है पुनः तैयार ।।

 

सिलपर नाम खुदा कर भी बोलो किसने क्या पाया है।

नाम छपे जो मन मानस में इससे अच्छा क्या रास्ता है।।

 

अब करलो अपनी तैयारी बर्तमान तुम्हें कर रहा पुकार।

फिर इतिहास के रजत पन्नो पर स्वर्ण जड़ित अंकित होंगे आप।।।

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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