लेखक की कलम से

क्या एनकाउंटर से लोग खुश हैं….?

ख़बर जैसे ही पढ़ी, सच में बेहद सुकून मिला, हैदराबाद पुलिस ज़िंदाबाद निकल गया। वजह भी है,  तुरन्त जहन में आया कि बेशक, यह तरीका संवैधानिक न हो पर न्यायालय, संविधान हम सब इनकी धज्जियाँ उड़ते हुए आजकल देख ही रहें हैं, फिर कैसी उम्मीद कि न्याय मिलेगा। बेशक गलत हो पर कुछ तो सुकून मिला, दो चार एनकाउंटर और हो जाएं तो उन्नाव की पीड़ित लड़की की तरह किसी और लड़की को जलाकर मारने की कोशिश भी न हो पाए पर……..यही पर सोचने पर मजबूर करता है।

हम त्वरित सुकून में यह भूल रहे हैं कि उसी पुलिस ने इस बीच में अपनी यह नाकामी छुपा दी, जिसमें स्त्री सुरक्षा व्यवस्था की पोल थी, उसी हैदराबाद पुलिस ने एफआईआर लिखने से मना कर दिया था क्योंकि उनके अनुसार लड़की अपनी मर्ज़ी से गई थी। यह तथ्य भी हम नकार गए कि अपराधी रसूखदार नहीं थे। रसूखदार अपराधियों के सामने पुलिस सिर्फ़ न्यायालय के हिस्से में न्याय क्यों करवाना चाहती है ? मैं हैदराबाद में नहीं रहती उत्तरप्रदेश में रहती हूँ और यहाँ ऐसे घिनौने अपराधियों को किस तरह सज़ा मिलेगी यह देखना चाहती हूँ या फिर ……………….

एनकाउंटर से उपजा उल्लास यह भी दर्शा गया कि हम अपने देश के कानून और व्यवस्था से कतई खुश नहीं।

© पूनम ज़ाकिर, आगरा, उत्तरप्रदेश

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