लेखक की कलम से

और कुछ दिनों बाद हम मनाएंगे महिला दिवस ..

आज भी कहाँ कुछ बदला है कुछ महिलाओं के लिए। भूखे भेड़िये बन गए है लोग, दहेज की लालच में कितनी बेटीयाँ कुर्बानी देती रहेगी। सुनकर खून खौल उठता है। शर्मसार होना चाहिए समाज को, गुजरात के अहमदाबाद में आयशा ने यह कहकर अपनी जान दे दी कि उसके पति को उसकी कोई परवाह नहीं है। दहेज और पैसों के लिए प्रताड़ित करता था। आत्महत्या करने से पहले आयशा ने अपने माता-पिता को एक संदेश भी दिया और कहा कि अगर बच गई तो ले जाना और अगर मर गई तो दफ़न कर देना। वो बच्ची कितनी तंग आ गई होगी ज़िंदगी से, आहत करने वालों से। पैसें क्या किसी इंसान की ज़िंदगी से ज़्यादा किमती होते है।

दरअसल, आयशा ने साबरमती नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। आत्महत्या करने से पहले उसने एक इमोशनल वीडियो भी बनाया और अपने परिवार को संदेश दिया। वीडियो मिलते ही परिवार वालों ने पुलिस में को खबर दी, जिसके बाद फायर ब्रिगेड और बचाव दल ने आयशा की लाश नदी से निकाली। क्या बिता होगा उस माँ बाप के उपर अपनी जवान बेटी की लाश देखकर

कैसा ज़ालिम पति जो कहता है कि मरने की वीडियो भेज देना। इंसानियत के नाम पर कलंक, एक हंसती-खेलती बच्ची को मरने पर मजबूर कर दिया।

ईश्वर करें आयेशा को अगला जन्म जरूर मिले और बहुत प्यार करने वालों के बीच जन्म लें,  दिल दहलाने वाली विडियो देखकर ही रूह काँप उठी। कोई-कोई इंसान मरते नहीं मार दिए जाते है। वहशीपन कि शिकार कितना सहती। रोज़-रोज़ मरने से अच्छा है एक मौत मर जाए। हम उस बच्ची के दर्द की कल्पना करते भी सहम जाते है, कोई कैसे किसीका इस हद तक दमन कर सकता है।

आयशा के पिता लियाकत अली ने कहा कि मरने से पहले आयशा ने कॉल किया था और बताया था कि वो साबरमती पुल पर खड़ी है और मरने जा रही है। इस पर दोनो ने उसे खूब समझाया लेकिन वो नहीं मानी। आयशा को कुरान की कसमें तक दी गईं लेकिन आयशा का कहना था कि उसका पति आरिफ उसे लेने नहीं आ रहा है। आयशा ने अपने पति से यह बात कही कि वो उसके बिना मर जाएगी तो इस पर आरिफ ने कहा कि मरना है तो मर जाओ, इस बात से आयशा काफी टूट गई थी। काश कि आयेशा के आस-पास कोई होता, काश कि बचा लिया जाता, काश कि आख़री वक्त पर डर जाती, कूदने से रुक जाती। पर अब सिर्फ़ काश बचा है एक और बेटी लालचीयों के हाथों बलि चढ़ गई है।

वीडियो बनाने से पहले आयशा ने कहा कि, हेलो सलाम वालैकुम, मेरा नाम आशया है, आयशा आरि‍फ खान, मैं जो कुछ भी करने जा रही हूं उसके ऊपर किसी का जोर या दबाव नहीं है। मैं अपनी मर्जी से करना चाहती हूं। कह लीजिए खुदा की दी हुई जिंदगी इतनी ही होगी। डि‍यर डैड, कब तक लडेंगे अपनों से, केस खत्‍म कर दो, आशया लडाई के लिए नहीं बनी, आरिफ को आजादी चाहिए, ठीक है वो आजाद रहे। अपनी जिंदगी इतनी ही थी। मुझे सुकुन वाली जिंदगी मिली, हम प्‍यार करते हैं आरि‍फ से। मैं खुश हूं कि अल्‍लाह से मिलूंगी। लेकिन दुआ करती हूं कि दोबारा इंसानों की शक्‍ल न दिखाए। ओ प्‍यारी सी नदी प्रार्थना करती हूं कि मुझे अपने आप में समा लें।

ऐसे में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि अगर इक्कीसवीं सदी की दहलीज़ पर खड़े समाज में भी बेटीयों को दहेज की वजह से नदी में कूदकर अपनी जान देनी पड़े तो ऐसे समाज और दुनिया को खत्‍म हो जाना चाहिए। डूब मरना चाहिए ऐसे दरिंदों को जो किसीको मरने पर  मजबूर करते है।

न्यायालय के ठेकेदारों से निवेदन है कि सच का साथ दें और ज़ाहिलों को कड़ी से कड़ी सज़ा देकर बेटी की आत्मा को शांति प्रदान करें और फूल सी बच्ची को न्याय दिलाएं।

©भावना जे. ठाकर                  

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